Find happiness right here right now…
जन्म से जैन कहलाने वाले अनेक लोग हैं, मगर समझ-बूझ कर जैन बनने वाले और जैन सिद्धांतों का ह्रदय से पालन करने वाले विरले ही मिलते हैं। आज हम चर्चा करने जा रहें हैं एक ऐसे शख्स की जो दिखने में अत्यंत साधारण नजर आते हैं, मगर उनकी साधना अचंभित करती है और आगम युग के पूणिया श्रावक की याद दिलाती है।
जन्म से उत्तरप्रदेश के निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार के रामसेवक पाल वर्त्तमान में मुंबई रहते हैं। इन्होनें लगभग पंद्रह वर्ष पहले जैन तेरापंथ संघ के आचार्य श्री तुलसी के शिष्य मुनि श्री रविन्द्र कुमार जी के पास जैन धर्म स्वीकार किया था।
व्यावसायिक दृष्टि से घर घर घूमकर गुलाब-जामुन बेचने वाले रामसेवक बिना सामायिक किये मुँह में पानी भी नहीं लेते। रात्रि-कालीन शिफ्ट में काम करने के कारण इनकी सुबह की दिनचर्या काफी late शुरू हो पाती है और अपनी अनेकानेक अपरिहार्य परिस्थितिओं के कारण इन्हें सामायिक करते करते शाम भी हो जाती है, परन्तु अपने नियम धर्म को लेकर ये काफी दृढ रहते हैं।
जैन होने के नाते अनेक श्रावक इन्हें आर्थिक सहयोग देने का प्रयास भी करते हैं , परन्तु स्वावलम्बी विचारधारा का अनुसरण करने वाले रामसेवक केवल खुद की मेहनत पर ही भरोसा रखते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये प्रतिमाह दो उपवास भी करते हैं, साथ ही साथ इनकी स्वाध्याय में अच्छी रूचि है। अपने व्यावसायिक कार्य से समय निकाल कर अब तक अनेक पुस्तकें पढ़ चुके हैं।
हाल ही में ठाणे तेरापंथ भवन में आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री महेंद्र कुमार जी के दर्शनार्थ आये तब आपसे मुलाकात हुई। आपकी कथा ने मुझे काफी प्रभावित किया, तब मैंने आपसे यह जानकारी शेयर करने की अनुज्ञा ली। स्वभाव से अत्यंत संकोची रामसेवक बड़ी मुश्किल से अपनी फोटो खिंचवाने हेतु तैयार हुए।
और हाँ, आपसे चर्चा के बाद मैंने गुलाब-जामुन का भी रसास्वादन किया, जो कि विशेष रूप से रोज-फ्लेवर वाले थे।