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कहते हैं कि साधना कहीं भी की जा सकती है परंतु स्थान का भी कुछ महत्व होता है इस बात से कोई मुकर नहीं सकता।
अच्छा शांत स्थान जहां हमें साधना की गहराइयों तक ले जा सकता है, वहीं बहुत सारी बाधाओं से भरा हुआ, कदम कदम पर समस्याएं पैदा करने वाला स्थान हमें साधना से भटका भी सकता है। जब तक हम साधना के प्राथमिक स्तर पर होते हैं तब तक एक छोटी सी बाधा भी हमें साधना से हरदम के लिए दूर कर सकती है इसलिए जरूरी है कि हम अपनी साधना-स्थली को बहुत ही तफसील से बनाएं और उसमें ऐसे संसाधनों का इस्तेमाल करें जो हमारी साधना में सहायक हों।
वैसे तो 5 मिनट के लिए अपने ऑफिस का दरवाजा बंद करके या फिर सुबह उठने के बाद बिस्तर पर ही 5 मिनट तक आँखें बंद करके सांसो पर ध्यान केंद्रित करके अथवा आत्म चिंतन करके भी साधना की जा सकती है। परंतु यदि एक अच्छा सुव्यवस्थित स्थान उपलब्ध हो तो साधना के शिखर पर चढ़ना काफी आसान हो जाता है। आज इस ब्लॉग में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि किस तरह अपनी साधना स्थली को डिजाइन किया जाए ताकि हम उसका मैक्सिमम बेनिफिट उठा सकें।
- साधना करने के लिए जिस स्थान का चयन करते हैं वह घर का एक पूरा कमरा अथवा किसी अन्य कमरे का छोटा सा कोना भी हो सकता है।
- स्थान का चयन करने के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि वह स्थान प्राकृतिक रोशनी, हवा आदि से समृद्ध हो।
- वह स्थान शांत हो और बाहरी बाधाओं से मुक्त हो।
- ऐसा स्थान जहां पर बहुत सारा सामान भरा हुआ है बहुत सारा फर्नीचर हो साधना के लिए उपयुक्त नहीं होता क्योंकि सामान भी ऊर्जा सोख लेता है। वहीं वह हमारे मस्तिष्क को भी डायवर्ट करता है।
- चक्षुरिन्द्रिय: वीतराग भावों को प्रकट करने वाले तीर्थंकरों की मूर्ति हमारे मन को भी शांत कर देती है। आलंबन के रूप में मूर्ति का प्रयोग किया जा सकता है बस इतना ध्यान रहे कि वह मूर्ति बहुत ज्यादा सजी-धजी ना हो। उस पर भौतिक वस्तुओं का श्रृंगार न किया गया हो।
- घ्राणेन्द्रिय: तरोताजगी देने वाली सुगंध भी कमरे की ऊर्जा को बढ़ा सकती है। इसके लिए धूप अगरबत्ती का इस्तेमाल किया जा सकता है अथवा एसेंशियल ऑयल जो कि विभिन्न प्रकार के फ्लेवर्स में उपलब्ध हैं उनका भी प्रयोग कर सकते हैं।
- श्रोत्रेन्द्रिय: शांति पैदा करने वाला संगीत साधना में सहायक हो सकता है। संगीत के अलावा तिब्बत में प्रचलित बाउल्स, शंख आदि का भी उपयोग किया जा सकता है।
- रसनेन्द्रिय: बौद्ध संस्कृति में ध्यान से पूर्व ब्लैक टी अथवा ग्रीन टी पीने की परंपरा है और इसके लिए बकायदा टी सेरेमनी भी मनाई जाती रही है यह प्रक्रिया हमारे टेस्ट के माध्यम से मन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
- स्पर्शनेन्द्रिय: स्पर्श की अनुकूलता के लिए इस बात का बंदोबस्त किया जा सकता है कि कमरे का तापमान ना अधिक गर्म हो और ना ही अधिक ठंडा। शुद्र जंतुओं मक्खी मच्छर आदि का भी वहां पर उपद्रव ना हो।