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व्यावसायिक दृष्टि से घर घर घूमकर गुलाब-जामुन बेचने वाले रामसेवक बिना सामायिक किये मुँह में पानी भी नहीं लेते।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये प्रतिमाह दो उपवास भी करते हैं, साथ ही साथ इनकी स्वाध्याय में अच्छी रूचि है। अपने व्यावसायिक कार्य से समय निकाल कर अब तक अनेक पुस्तकें पढ़ चुके हैं।
स्नान करने के पश्चात हम शारीरिक रूप से खुद को तरोताजा महसूस करते हैं। आलस्य का प्रभाव भी कुछ हद तक कम हो जाता है। वहीँ जैन परंपरा में ज्ञान के अतिचारों में वर्णित अस्वाध्याय के कारणों— यथा मल-मूत्र, वीर्य रक्त आदि अशुभ तत्वों की विशुद्धि भी हो जाती है, जिनके रहने पर स्वाध्याय नहीं किया जा सकता।