Find happiness right here right now…
देहातीत अवस्था को उपलब्ध होकर प्रशांत मुद्रा में माँ (तोली देवी नाहटा) को आज घर के आँगन में लेटे हुए देखकर मन विचलित हो उठा। वो तो सदा सजग, सक्रिय और सत्व से ओतःप्रोत नजर आते थे। वैसे वो मेरी दादीसा हैं, मगर बचपन से उन्हें माँ के संबोधन से ही पुकारा है। न सिर्फ मैंने बल्कि सबने। सात भाई और 3 बहनों वाले विस्तृत चतुर्भुज नाहटा के परिवार में आज से लगभग 66 वर्ष पूर्व धनराज जी नाहटा की पत्नी बनकर सबसे छोटी बहू के रूप में आप इस घर के आँगन में आई थी। मात्र 12 वर्ष की नन्ही सी उम्र। सास अथवा ससुर तो नहीं थे मगर 6 जेठ-जेठानियों वाले बड़े परिवार में उसकी कमी कभी खली नहीं होगी। जिस उम्र में अपने आप को भी संभालना मुश्किल होता है, उस उम्र में अपने पिता का घर छोड़कर किसी अनजान व्यक्ति को अपना जीवन-साथी मानकर उसके घर को अपना घरौंदा बना लेना, बेशक क्या असीम ताकत होती थी उस समय की भारतीय नारी में। बहुत जल्द ही घर का बंटवारा हुआ और खुद के बलबूते पर एक घर का समग्र उत्तरदायित्व माँ के नन्हे कन्धों पर आ गया।
आपकी माँ श्रीमती वृद्धिदेवी मूलचंदजी सेठिया ने आपको एक सक्षम व्यक्तित्व के रूप में सिंचन दिया था। न सिर्फ गार्हस्थ्य का गहन प्रशिक्षण आपको मिला था अपितु अध्यात्म के भी गहरे संस्कार आपको मिले थे। वृद्धिदेवी कठोर तपस्विनी थी। उन्होंने जैन धर्म में एक श्राविका के रूप में साधना के जो प्रयोग किये थे, वे आज भी पाठक के ह्रदय को विस्मित कर देते हैं। उन्होंने जीवन के अंतिम काल में 65 दिनों का कठोर तप कर अपनी देह का समत्व भाव के साथ त्याग किया था। “आत्मा-भिन्न, शरीर भिन्न” उनके जीवन का अमोघ मंत्र बन गया था।
एक तपस्विनी की आनुवांशिकी माँ (तोली देवी) को विरासत में मिली थी। अल्प-सुविधा और कठोर परिश्रम वाले वातावरण ने आपको और भी अधिक मजबूत बनाया। अपने जीवन साथी धनराजजी नाहटा के साथ आपने संयम के साथ जीवन यापन करते हुए तीन पुत्र : जेठमल, सुशील और धीरज और एक पुत्री लीला का पालन पोषण किया और उन्हें अच्छे संस्कारों के साथ उन्हें बड़ा किया। सांसारिक जीवन के साथ-साथ उन्होंने अध्यात्म को सदैव शीर्ष पर रखा और 11 वर्षीतप किये। सामायिक, स्वाध्याय, योग, ध्यान, जप, भजन, गुरुसेवा आदि कार्यों में भी आप हमेशा बढ़-चढ़ कर आगे रहते थे। अपने बेटे-बेटी, पोते-पोतियों सभी को आपने हमेशा आध्यात्मिक संस्कारों से सुसंस्कृत बनाया है। भले ही और कुछ ज्ञान हो अथवा नहीं,नवकार मन्त्र, वंदन पाठ, सामायिक पाठ, 24 तीर्थंकर एवं 11 आचार्यों के नाम आदि का अवबोध बच्चों को करवाना आपकी नियमित क्रिया थी।
जब आचार्य महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान का प्रणयन किया तब से आपकी रूचि ध्यान एवं योग साधना में भी विशेष हो गयी। मुझे स्मरण है कि मेरी प्रथम योग-शिक्षक माँ ही रही है। साथ ही साथ सूर्य किरण चिकित्सा के प्रयोगों के माध्यम से वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों का प्रथम अवबोध भी माँ ने ही मुझे करवाया। आज Evo4soul Meditation Resort में जो योग, ध्यान एवं आध्यात्मिक चिकित्सा के प्रयोग संचालित हो रहे हैं उनका बीज वपन माँ ने ही किया था, ऐसा मेरा मानना है।
पिछले कुछ समय से माँ शारीरिक तौर पर स्वस्थ नहीं थे। मगर जब भी मैं उनके पास जाता तो उनका हमेशा एक ही अनुरोध होता कि मुझे कोई भजन गाकर सुनाओ। पापा (जेठमल जी), सुशील काका, धीरज काका, लीला भुआ, मम्मी (लीला देवी), संजना चाची, शांति चाची, मैं, अरिहंत, अमित, रजत, राजकिशोर, बबीता, प्रज्ञा, राजश्री, अंकिता, कविता, नेहा तथा नयी पीढ़ी के अंशिका, मेहुल, दिवा, चिराग, नव्या, मुस्कान आदि सभी को वो धार्मिक भजन, जाप आदि की प्रेरणा देते रहते थे। अपनी माँ का जीवन मंत्र “आत्मा भिन्न-शरीर भिन्न” उनका भी जीवन मंत्र बना। उस असहाय वेदना की अवस्था में ॐ भिक्षु का जप उनके दर्द की पीड़ा को कम करने में बड़ा कारगर रहा। सोडियम की कमी के चलते उनकी स्मृति काफी कमजोर हो गयी थी, मगर उनको भजन तब भी याद थे। जब भी कोई भजन गाता वे साथ साथ गुनगुनाने लगते।
जीवन के युद्धक्षेत्र में हर कोई उतरता है, मगर विजय कोई-कोई ही हासिल कर पाता है। मैं माँ को एक समुराई योद्धा के रूप में देखता हूँ। उनके द्वारा दिए गए अनमोल संस्कार और उनके साथ बिताये पलों से मिले अनुभव मेरे जीवन की पूँजी रहेंगें। नाहटा परिवार सौभाग्यशाली था कि एक ऐसी दिव्य-आत्मा ने अपना जीवन बिताने के लिए इस घर का चयन किया। आज वो सशरीर हमारे बीच नहीं हैं मगर हर सदस्य के भीतर कहीं न कहीं उनका प्रतिबिम्ब नजर आता है। अतः यह कह सकते हैं कि वे अब एक नहीं अपितु अनेक हो चुके हैं। उनके विस्तार की इस यात्रा का अभिनन्दन करते हुए मैं यह कामना करता हूँ कि वे अपने विकास की इस यात्रा पर निरंतर आगे बढ़ते रहें और अपनी सर्वोच्च मंजिल वीतरागता को प्राप्त करें।
एक सामान्य व्यक्ति अपनी प्रत्येक जानकारी लिए दूसरे पर आश्रित रहता है । प्रत्येक कथन का कोई न कोई संदर्भ अवश्य होता है । कहा जाता है ‘मैंने सुना है कि’ , ‘सूत्रों के अनुसार’ , ‘ अमुक पुस्तक में पढ़ा’ , ‘पुराने लोग कहा करते थे’ , ‘लोकोक्ति है’ आदि ऐसे अनेक प्रयोग भाषा-व्यवहार में उपयोग किए जाते हैं परन्तु जब आगमों के द्वारा भगवान महावीर की वाणी से साक्षात्कार होता है तब वे फरमाते हैं ‘ त्ति बेमि ‘ अर्थात् ‘ ऐसा मैं कहता हूं ‘ क्योंकि भगवान महावीर को किसी संदर्भ या प्रमाण की अपेक्षा नहीं । वे स्वयं प्रमाण है , उनका ज्ञान प्रमाण है । उनकी वाणी दूसरों के लिए संदर्भ का काम करती है । जहां ज्ञान आत्मजन्य होता है वहां सहारा दूसरे का नहीं होता । भगवान महावीर के ये सामान्य प्रतीत होने वाले शब्द असामान्य योग्यता की मांग रखते है । तीन बिन्दुओं के कारण इन शब्दों का विशेष महत्त्व है ।
वीतरागता
छद्मस्थ मनुष्य की दृष्टि शुद्ध नहीं होती क्योंकि वह पूर्व में अर्जित कर्म, संस्कार और धारणाओं से काफी प्रभावित होती है। जब हर तत्त्व को राग-द्वेष, अच्छा-बुरा, अपना-पराया की दृष्टि से देखा जाता है तब सत्य का साक्षात्कार नहीं होता। सत्य शब्द नहीं अनुभूति है। अतः पक्षपात से प्रदूषित चेतना के लिए सत्य अगम्य हो जाता है। वास्तविक पहचान धूमिल हो जाती है। उदाहरण के लिए दो व्यक्ति हैं। एक के लिए रसगुल्ला अत्यन्त ही स्वादिष्ट है व दूसरे को तो मानो उसके नाम से ही छींक आती है। प्रथम व्यक्ति के लिए रसगुल्ला अनुकूल है, अच्छा है, रुचिकर है व दूसरे के लिए रसगुल्ला प्रतिकूल और बेकार । एक ने रसगुल्ले को अच्छा बताया और दूसरे ने खराब , पर रसगुल्ला वास्तव में क्या है? अच्छी या बुरी तो धारणा होती है। रसगुल्ला तो रसगुल्ला है। किसी द्रव्य की वास्तविक पहचान के लिए यह अनिवार्य है कि दृष्टि महावीर की तरह राग-द्वेष से उपरत हो, सम्यक् हो, वीतराग हो। इस प्रकार वीतरागता, समदृष्टि भगवान को अधिकार देती है कहने का- ‘ऐसा मैं कहता हूं।’
केवलज्ञान
जब अपूर्ण सम्पूर्ण बन जाता है तब वह केवलज्ञान कहलाता है । अधूरा ज्ञान और एकांगी चिन्तन किसी भी बात की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा देता है । ये ठीक उस न्यायाधीश की तरह है जो केवल एक पक्ष को सुनकर अपना निर्णय दे देता है जो बड़ी ही घातक बात है । प्रत्येक तत्त्व के अनन्त पहलू होते हैं । विविध पहलुओं का अवलोकन , अनुचिन्तन , समावेश ही अनेकान्त कहलाता है और अनेकान्त की उत्कृष्ट साधना ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही संभव हो सकती है । इसी पूर्णता के साधक थे भगवान महावीर , जो अपने केवलज्ञान से, सम्पूर्णज्ञान से
द्रव्यों के अनन्त-अनन्त पर्यायों को जानकर , अनुभव कर तत्त्व का निरूपण करते । यह उत्कृष्ट अनेकान्त की साधना भगवान महावीर को विश्वसनीयता देती है कहने की- ‘ ऐसा मैं कहता हूं ‘ ।
तीर्थकर नाम-गोत्र कर्म का उदय
भले ही कोई वीतरागता हासिल कर ले या सर्वज्ञान भी प्राप्त कर ले , पर यदि श्रोता ही न हो , अमल करने वाला ही न हो , श्रद्धा करने वाला ही न हो तो पर-हित की दृष्टि से उसका क्या मूल्य रह जाएगा ? बस भगवान महावीर ने कहा ‘ ऐसा मैं कहता हूं ‘ और अनगिनत लोग प्रभावित हो धर्म को स्वीकारने के लिए तैयार हो गए , संयम में तत्पर हो गए, इसका क्या कारण है ? वह है तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म का उदय । यह भौतिक प्रभाव का निर्माण करता है । केवलज्ञान एवं वीतरागता आत्मा के गुण है परन्तु तीर्थ की स्थापना हेतु यह पर्याप्त नहीं । उसमें भौतिक गुणों की भी अपेक्षा होती है । यह तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म का उदय ही एक केवलज्ञानी को तीर्थंकर बनाता है । यह कर्म प्रातिहार्य , सुदृढ़ व आकर्षक शरीर और अतिशयों के द्वारा एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के निर्माण में भी सहायक बनता है । जिससे एक-एक शब्द का ओज श्रोता के लिए सहस्रगुणित हो जाता है ।
उपसंहार
वीतरागता , केवलज्ञान और तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म का उदय , ये तीन का संयोग भगवान महावीर की वाणी को निष्पक्ष , सत्य और प्रभावशाली बनाती है । अत: वे सच्चे अधिकारी थे यह कहने के लिए कि – ‘ ऐसा मैं कहता हूं ‘ ।
108 Surya Namaskar on International Yoga Day has been done at Evo4soul Meditation Resort. The workshop has been operated both online and offline platform. The program started at 6.00 am with warm up and stretching exercises and after that 108 Surya Namaskar has been started which went on till 7.15 am. Most of participants finished 108 Surya Namaskar.
If yes to any of the above, call the Evo4soul Meditation Resort to cancel your appointment or your registration for a class or workshop and consult your physician.
Q: Are clients and students required to wear masks?
A: We ask that all students and clients to wear masks in the common areas. Students are not required to wear masks when practicing on their mats.
Q: How many students are allowed in public yoga classes?
A: We can maintain 6 feet distance with maximum 10 students.
Evo4soul Meditation Resort के उद्घाटन का गरिमामय समारोह आज प्रातः काल गंगाशहर में संपादित हुआ। पवित्र जैन मंत्रों एवं स्रोतों की धुन के बीच आयोजित हुए इस समारोह में आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने गंगा शहर में ध्यान केंद्र की अपेक्षा पर बल देते हुए रिजाॅर्ट की वृद्धि हेतु मंगल कामना की। बीकानेर नगर निगम के पूर्व महापौर नारायण जी चोपड़ा ने जैन साधना पद्धति पर आधारित ध्यान केंद्र को एक अमूल्य देन के रूप में प्रतिपादित किया। इवोफोरसोल मेडिटेशन रिजॉर्ट के फाउंडर एवं डायरेक्टर पीयूष कुमार नाहटा ने केंद्र की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि यहां पर नियमित रूप से ध्यान एवं योग की कक्षाएं तो आयोजित होंगी हीं, साथ ही साथ बौद्धिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास हेतु मंत्र, प्रार्थना, उपवास, मौन आदि साधना के विशिष्ट प्रयोग भी करवाए जाएंगे।
यूआईटी के पूर्व चेयरमैन श्री महावीर रांका ने फीता काटकर तथा नगर निगम के पूर्व चेयरमैन नारायण जी चोपड़ा दीप प्रज्वलन कर ध्यान केंद्र का उद्घाटन किया। तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष पवन छाजेड़ एवं मंत्री देवेंद्र डागा ने भी समारोह को संबोधित किया। तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा श्रीमती ममता रांका एवं मंत्री श्रीमती कविता चोपड़ा ने सेंटर का अवलोकन कर अपने अमूल्य सुझाव प्रदान किए। जैन संस्कारक के रूप में पॉजिटिव सर्कल्स के डायरेक्टर श्री सुमित नाहटा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संस्कार प्रक्रिया के उपरांत पीयूष कुमार नाहटा द्वारा श्वेत रक्त अतिशय-युक्त तीर्थंकर के ध्यान के रूप में कोरोना महामारी से मुक्ति हेतु विशिष्ट प्रयोग करवाया गया।
श्रीमान धनराज नाहटा एवं श्री धीरज नाहटा ने अतिथियों का स्वागत किया।
खड़की, पुणे का प्रेम विला। मरलेचा परिवार। एक कैंपस में तीन भाइयों के तीन घर, साथ ही साथ दो खूबसूरत गार्डन भी। लॉकडाउन का समय जहां अन्य परिवारों के लिए काफी बोरियत भरा रहा वहीं इस परिवार के लिए यह स्पेशल रहा क्योंकि इस दौरान प्रो मुनि श्री महेन्द्र कुमार जी अपने सहयोगी 4 संतों के साथ यहां प्रवासित रहे।
इसी दौरान मुनि श्री के संग आगम कार्य के सिलसिले में प्रवास कर रहे पीयूष कुमार नाहटा भी संग में थे।
लॉकडॉउन के समय का सुंदर नियोजन करते हुए उन्होंने भक्तामर कार्यशाला का आयोजन किया। लगभग 2 माह तक चली इस कार्यशाला में भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक का आध्यात्मिक एवं भाषाशास्त्रीय विश्लेषण किया गया। इसके चयनित श्लोकों पर ध्यान के प्रयोग भी करवाए गए।
इसी के साथ प्रातःकालीन सत्र में चक्रा हीलिंग कोर्स का आयोजन किया गया।
कोरोना से संबंधित दिक्कतों के चलते इस कार्यशाला में सिर्फ प्रेम विला कैंपस के तीन परिवारों ने ही भाग लिया। इस कार्यशाला में सम्मिलित प्रतिभागियों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखते हुए कार्यशाला को संपादित किया।
एक लम्बे अरसे के लॉकडाउन के बाद भारत सरकार में 5 अगस्त 2020 से जब योग सेंटर को खोलने की अनुमति प्रदान की तब कोरोना से सम्बंधित सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए, सोशल डिस्टेन्सिंग तथा सेनेटाईजिंग का ध्यान रखते हुए गंगाशहर में 21 दिवसीय Chkara Healing Course का सफल आयोजन पीयूष कुमार नाहटा के तत्त्वावधान में किया गया।
सुरक्षा की दृष्टि से सीमित प्रतिभागियों को ही प्रविष्टि दी गई। प्रातः 6 से 7 बजे तक आयोजित होने वाले इस प्रशिक्षण सत्र में 9 साधकों ने भाग लिया।
मंत्र साधना, योग, ध्यान एवं जीवन शैली में परिवर्तन लाने वाले प्रयोगों के माध्यम से शरीर में विद्यमान विभिन्न चक्रों के शुद्धिकरण की साधना करवाई गई।
तेरापंथ भवन, कांदिवली में प्रसिद्ध जैन स्कॉलर पीयूष कुमार नाहटा के मुख्य वक्तृत्व में मंत्र साधना सप्ताह का आयोजन हुआ। डॉ. मुनि श्री अभिजित कुमार जी के सान्निध्य में प्रारंभ हुए इस आयोजन में मंत्र साधना से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर श्री पीयूष द्वारा सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। मंत्र साधना में रूचि रखने वालों के लिए यह आयोजन काफी सार्थक एवं ज्ञानवर्धक रहा। चयनित विषयों के वक्तव्य YouTube पर उपलब्ध हैं, जिन्हें सुन कर शोधकर्ता लाभान्वित हो सकते हैं।
जैन परंपरा के एक महत्वपूर्ण स्तोत्र भक्तामर के संदर्भ में तेरापंथ महिला मंडल फरीदाबाद द्वारा प्रसिद्ध जैन स्कॉलर पीयूष कुमार नाहटा के तत्वावधान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
21 दिसंबर 2019 को आयोजित इस कार्यशाला में भक्तामर के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और चिकित्सा संबंधित पक्षों पर प्रकाश डालते हुए पीयूष ने कहा: आचार्य मानतुंग द्वारा रचित यह महान स्तोत्र अपने चामत्कारिक स्वरूप के लिए जाना जाता है। इसका हर श्लोक हमारे जीवन के विभिन्न आयामों में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा सूचनाओं को दूर कर उनके स्थान पर रचनात्मकता का आविर्भाव करता है।
इस कार्यशाला के दौरान हुए वक्तव्य अब यूट्यूब पर भी उपलब्ध हैं।
किसी ने कहा है- It takes more than a suit to be a gentleman. You can wear a thousand dollar suit but remember a monkey in suit is still a monkey.
निश्चित रूप से बाहर के परिवेश को बदलना आसान है इसलिए उसका बाजार हमेशा गरम रहता है। भीतर से बदलने का प्रयास वे ही करते हैं जो लम्बी दूरी तय करने जितना साहस और धैर्य रखते हैं। 100 कदम की दौड़ में तो चीता भी 90 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से भाग सकता है मगर जब लम्बी दूरी तय करने की बात हो तो एक मनुष्य प्रायः सभी प्राणियों को पीछे छोड़ सकता है, ऐसा एक शोधकर्ता का दावा है। यहाँ तक कि एक गर्म दिन में 26.2 मील की मेराथन में एक मनुष्य घोड़े को भी पीछे छोड़ सकता है।
एक अच्छा पहनावा निश्चित रूप से बेहतरीन प्रभाव डालने के लिए एक उपयोगी माध्यम हो सकता है मगर आंतरिक व्यक्तित्व के बेहतरीन हुए बिना यह प्रभाव दीर्घकालिक नहीं बन पाता। अपने समय, श्रम और संसाधनों का उपयोग जितना हो सके खुद को बेहतर बनाने में करें।
कुछ प्रयोग इस दृष्टि से महत्वपूर्ण बन सकते हैं, जैसे:
पल रही थी ख्वाहिशें मन में अनंतों,
आज उनका अंत करने जा रहा हूं।
भूख आत्मा की बुझाने का समय है,
सिद्ध पथ चुनने अकेला जा रहा हूं।
है करोड़ों दिनकरों से तेज जिसका अधिक वो..हो
चंद्रमाओं से अमलतम
सागरों से भी गहनतम
सिद्धता अवतरित मुझ में
मौन जिसमें प्रकट पावन
शून्यता का खिले उपवन
शुद्ध हो मम आत्म कण-कण
सिद्धता अवतरित मुझमें
भेद में उलझा रहा था मैं सदा ही
खोज आज अभेद की करने चला हूं।
ढूंढता बाहर सदा था सौख्य जो मैं
आज भीतर की तरफ ही बढ़ चला हूं।
तार अंतर से जुड़ें अब
और झंकृत हो सदा मन
चंद्रमाओं से अमलतम
सागरों से भी गहनतम
सिद्धता अवतरित मुझ में
मौन जिसमें प्रकट पावन
शून्यता का खिले उपवन
शुद्ध हो मम आत्म कण-कण
सिद्धता अवतरित मुझमें
तन ही मैं हूं, मानता था
आत्म से अनजान सा था।
भ्रम अंधेरे में उलझकर
बन गया नादान सा था।
भोर ऊगी जिन्दगी की और जागा
सो रहा मन छोड़कर भ्रम का अंधेरा
गीत मुक्ति का बजा है
सनन सन सन सनन सन सन
चंद्रमाओं से अमलतम
सागरों से भी गहनतम
सिद्धता अवतरित मुझ में
मौन जिसमें प्रकट पावन
शून्यता का खिले उपवन
शुद्ध हो मम आत्म कण-कण
सिद्धता अवतरित मुझमें
“क्या यार मैं हमेशा ही late हो जाता हूँ,” की बजाय “मेरा हमेशा इंतजार करने के लिए मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ,” ज्यादा बेहतर वाक्य है।
“मैं भी कितना भावुक हूँ, है ना!” की बजाय “मुझे, जैसा मैं हूँ, वैसा स्वीकार करने के लिए तुम्हारा धन्यवाद,” कितना अच्छा लगेगा!
“माफ़ करो यार मैं हमेशा बिखरा हुआ ही रहता हूँ”, की बजाय “मेरी हर गलती के दौरान तुम जिस धैर्य का परिचय देते हो वो काबिल-ए-तारीफ है,” बोलिए।
“मैं तुम्हें बार-बार हेल्प मांग कर परेशान करता हूँ ना?” की बजाय “मेरा सहयोग करने के लिए तुम्हारा शुक्रिया,” कहना कितना अच्छा है।
“मैं भी कितना बडबड करता रहता हूँ,” की बजाय “मेरी बात तुम ध्यान से सुनते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है,” ये कहकर वातावरण बदल सकते हैं।
कहने को तो सिर्फ शब्दों का ही फर्क है, मगर इन शब्दों साथ जो वातावरण में बदलाव आप महसूस करेंगें, वो बहुत कीमती होगा।