Find happiness right here right now…
देव-अस्तित्व के सन्दर्भ में “क्या देव होते हैं? एक चिंतन, भाग-1” में मैंने जो विचार प्रस्तुत किए थे उनके बारे में जो प्रतिक्रिया देखने को मिली, वह काफी उत्साहवर्धक थी। आज इस विषय पर कुछ और महत्वपूर्ण तथ्यों की समीक्षा करने का प्रयास कर रहा हूँ।
देवों को प्राकृतिक शक्तियों एवं महापुरुषों के प्रति अपनी श्रद्धा की अभियक्ति देने के एक माध्यम के रूप में विकसित किया गया था। मगर उनके प्रति श्रद्धा से उत्पन्न हुए चमत्कारिक प्रभावों ने उनके अस्तित्व को सत्य जैसा बना दिया। हालाँकि जिन चमत्कारों की चर्चा की जाती है, वे सभी मनोवैज्ञानिक एवं सामान्य वैज्ञानिक नियमों के आधार पर बिना किसी देव-सहायता के भी संभव हो सकते हैं, ऐसा प्रतीत होता है।
फिर भी सामान्यतः एक आम व्यक्ति यह मानने के लिए तैयार नहीं होता कि मैं भी बिना किसी दिव्य-सहयोग के कोई महान कार्य कर सकता हूँ। इसलिए कभी-कभी श्रद्धा के लिए किसी केंद्र की अपेक्षा महसूस होने लगती है और देव उस अपेक्षा की पूर्ति करने का एक सक्षम माध्यम बन जाते हैं। मनुष्य का जीवन प्रायः काल्पनिक वस्तुओं पर टिका हुआ है। एक कागज का टुकड़ा सिर्फ इसलिए कीमती बन जाता है क्योंकि उस पर करोड़ों लोग विश्वास करते हैं। विश्वास न हो तो उसकी कीमत रातों-रात समाप्त हो जाती है। जमीन का टुकड़ा देश बन जाता है और उसके प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्ति को इतनी ऊर्जा से भर देता है कि वह उसके लिए अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाता है। एक व्यक्ति के द्वारा प्रतिपादित किये कुछ सिद्धांत धर्म बन जाते हैं और उसकी रक्षा के लिए बड़े-बड़े धर्मयुद्ध अथवा जिहाद हो जाते हैं।
ठीक वही बात देव-श्रद्धा के बारे में है। एक पत्थर स्थापित कर रातों रात उस पर महान मंदिर बनाए जा सकते हैं, उसके चमत्कार की गाथाएं प्रचारित हो सकती है। इसके उदाहरण हमें अपने आस-पास देखने को मिल सकते हैं।
प्रश्न यह रह जाता है कि देव अस्तित्व को मानने से यदि कोई व्यक्ति को मानसिक आधार मिलता है, हिम्मत मिलती है, तो क्या बुरा है?
इस सन्दर्भ में मेरा मंतव्य है कि जब तक व्यक्ति आध्यात्मिक समझ के प्राथमिक पायदान पर है, तब तक देव सहयोग पर विश्वास उसके लिए खुद पर विश्वास करने से बेहतर माध्यम हो सकता है क्योंकि यह सरल प्रतीत होता है। खुद में छिपी अनंत शक्तियों पर भरोसा करना उस परिस्थिति में संभव नहीं होता। ऐसे में देव-श्रद्धा, देव-पूजा का आलंबन लिया जा सकता है। परन्तु साथ ही साथ अपनी आध्यात्मिक समझ को विकसित करने का भी प्रयास करते रहना चाहिए।
अगला प्रश्न यह उठ सकता है कि यदि देव पूजा करनी ही हो तो कौनसे देवता का चयन करें?
जैसा कि हम पहले पढ़ चुके हैं प्रत्येक देवता किसी न किसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। चाहे वह ज्ञान हो या धन, शक्ति हो या सृजन। अगर देव अपने आप में किसी विचार का ही साकार रूप है तो हमारे लिए एक प्रारूप यह हो सकता है कि हम जिस विचार की साधना कर रहे हैं उस विचार से सम्बंधित देव की आराधना करें। जैसे सरस्वती की उपासना विद्या प्राप्ति के लिए की जा सकती है। इसी प्रकार धन-प्राप्ति के लिए लक्ष्मी की उपासना की जा सकती है। शक्ति की साधना के लिए एक विकल्प दुर्गा का हो सकता है। वहीँ वीतरागता की प्राप्ति के लिए तीर्थंकरों की उपासना-आराधना की जा सकती है।
देव-पूजा को लेकर अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। इनमें से किस विधि का चयन किया जा सकता है यह अपने आप में विचारणीय बिंदु है जिस पर हम इसी आलेख के आगामी भागों में चर्चा कर सकेंगें।
बहुत ही सार गर्भीत जानकारी। बहुत बहुत अनुमोदना।
LikeLiked by 1 person